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* श्री लँबेचू समाजका इतिहास २०३ जहा जाणई कोसलेसस्स सारा
झुणीणस्स मंदाइणी तेयतारा । रए कंतुणो (?) दाक्षिणो सुद्धकित्ती
जहासण्ण-भब्वस्स सम्मत्त-वित्ती। पत्ता-तासु मुलक्खण विहिय
कुलक्कम अणुगामिणि तह जणमहिय। तहि हुव वे गंदण णयणाणंदण
हरिदेउ जि दिउराउ हिया ॥६॥
कलाओं के जानकार थे और विशेष विज्ञान से उनका स्वभाव उज्ज्वल हो गया था। विद्वानों के बीच वे बड़े बुद्धिमान पंडित थे और समस्त विद्या विलास उन्हें प्राप्त था। वे पदाधिकारी थे, अविकलांग थे और उनका मुख विकसित कमल के समान था।
आयु के क्षय होने पर वे रत्नपाल, गुण-गण-बिशाल, स्वर्गालय को सिधारे। उनके पश्चात् शिवदेव साहु पिता के पद पर आग्रह-रहित होकर बैठे। आहवमल्ल राजा के हाथ से उनका तिलक हुआ। वे महाजनों में मान्य और महागुणों के निलय हुए। इस तरह शिवदेव साहु, अपने कुल और वंश के केतु, प्रतिष्ठित हुए और लोग उनकी सेवा करने लगे। और कण्हड जिनका पहले उल्लेख कर आये हैं और जो पुण्य-द्वारा पवित्र और