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*श्री लँबेचू समाजका इतिहास *
परियाणिय- करण - विलास - कज्ज
रूवेण जित्त - सुत्ताम भज्ज । गंगा-तरंग - कल्लोल - माल
समकित्ति - भरिय - ककुहंतराल । कलयंठि-कंठ-कल-महुर-वाणि
गुण-गरुव-रयण-उप्पत्ति-खाणि । अरिराय-विसह संकरहो सिट्ठ
सोहग्ग-लग्ग गोरि ब्व दिट्ठ। पत्ता-तहिं पुरेकइ-कुल-मंडणु
दुण्णय-खंडणु मिच्छत्तत्तिण जित्तउ । सुपसिद्धउ .कइ लक्खणु
बोह-वियक्खण परमय-राय ण छित्तउ । शंकर प्रसिद्ध हैं। वे क्षत्रिय-शासन को पालनेवाले, शत्रु-बल को त्रास देनेवाले और उनके मण्डल को उजाड़ करनेवाले, महान् यश के फैलानेवाले, नवीन जलधर मेघ के समान हर्षकारी और दुनाति वृत्ति को दूर करनेवाले हैं। ___ उनकी पट्ट महादेवी · ईसरदे' प्रसिद्ध हैं जो उनकी स्नेहमयी प्रणयिनी हैं। वे समस्त अन्तःपुर में प्रधान और अपने पति को प्रसन्न रखने में सावधान हैं। सज्जनों के मनके समान पृथ्वी को