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बेच समाजका इतिहास * और वड साजनका भेद देखा । राजा विक्रमादित्य सम्बत कारका पता उससे उतार कर लाये विक्रम प्रबन्धके गाथा इसमें दिये हैं तो हमको मालूम होता है कि यदुवंशियोंका ही परिकर है। नहीं तो ५६ करोड़ यादव सब भस्म थोड़े ही भये द्वारका में १८ करोड़ ही गये थे।
हमारे विद्वान् लोगभी इतिहास लिखते साहु या शाह से वानिये लिखते हैं जब उसमें यह लिखा है कि राज व्यापारमें दक्ष तो राज व्यापार पनियोंका होता है क्या इस राजपूताने इतिहासमें जो ओझाजीने अक्षपटलाधीश सौंधि विग्रहिक इन मेहक्माओंमें क्षत्रिय ही नियुक्त होत थे। वणिपति वनियोका पति बनियों पर आधिपत्य रखने बाला बनिया कैसे समझ लिया अब तो शाह पदवी राणाओंके साथ भी थी। राजपत इतिहास या गजिटियर से मालूम हो जायगी। तो बनिये कैसे समझ लिये साधु नाम सज्जनका है श्रेष्ठ नाम अंठ पुरुषोंका है आज कल कंट्रोल राशन कार्ड आदि पर ब्राह्मण क्षत्रिय आदि सवही नियत है तो सब याते बनिये हो गये यह भृत है हमने अपनी इयत्ता असलियत न समझी यह भूठ है। अब तो गजटियरमें दिखा चुक हैं। राणा उडुमरवक पुत्र राणा सफेरसिंह को शाह लिखा है।