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जहिं चरड चाड कुसुमाल भेड
* श्री लँबेचू समाजका इतिहास #
ण वियंभहि कहि मि न धणविहीण
पेम्माणरत परिगलिय
तंबोल
दुखण सखुद्द खल पिसुण एड ।
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दविणड्ढ णिहिल पर धम्मलीण ।
गव्व
जहिं बसहिं विक्खण मणुव सन्च ।
वावार सव्व जहिं सहहिं णिच्च
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कणयंत्रर भूसिय
रंग रंगिय धरग्ग
तहिं णरवर आहवमछ
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जहिं रेहहिं सारुण सयल मग्ग ।
एउ
राय - भिच्च ।
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दारिद
सेउ ।
समुद्दत्तरण
रहे हैं। जहाँ लावण्यपूर्ण, धन-लोलचित्त द्रविणांगनाएँ ( वारांगनाएँ ) बाहिरी प्रेम में लिप्त है। जहाँ लम्पट, कपटी, चोर, भीरु, दुर्जन, क्षुद्र, खल, पिशुन, भांड कहीं दिखाई नहीं देते, न कोई धन-विहीन है, सब लोग धनी और धर्म में लीन हैं । जहाँ सब मनुष्य प्रेम में अनुरक्त, गर्वरहित और विचक्षण बसते हैं । जहाँ राजा के नौकर नित्य सोने के जरीदार कपड़ों से भूषित सब कारबार करते हैं । जहाँ धराम्र ताम्बूल रंग से रंगे होनेके कारण