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* वे समाजका इतिहास अटेर में एतापट्ट हुआ। सं० १२८० जितकीर्ति वयेरे हुआ, सं० १२६६ रतनकीर्ति नागद्रा, सं० १३०० प्रभाचंद्र पोड़वार यह पट्ट अजयगढ़ हुआ। आगे सगले आचार्य सर्वथा कालदोष से भट्टारक स्थाप, यहाँ से गुजरात से आचार्य से भट्टारक हुआ। सं० १३८५ कुन्दकुन्द पल्ली वाल जिनने गिरनार पर्वत पर पाषाण की प्रतिमा ब्राह्मीदेवी को मुख बोलाई । आदि दिगम्बर ऐसा शब्द तीन वार कहती भई। (ब्राह्मी ) देवी अम्बा देवी । ___ सं० १४५० शुभचंन्द्राचार्य अग्रवाल, सं० १५७० जिनचंद्र, संवत् १५७१ जिस वक्त ( नोरंग जेब ) ओरङ्ग जेब बादशाह तथा आलमगीर बादशाह दिल्ली में ( सब मतों) को एक करना ( विचारा) चाहा। ता समय दिल्ली के श्रावक गुजरात गये। श्री प्रभाचंदजी गुजरात से आये दिल्ली वहां से शाहजहानावादको आये। बादशाह को मिले जैन धर्म थापि श्रावकों को मुसलमान न होने दिया। तब प्रमाचन्दजी ने काल का विचार कर वसधारी स्थापै । जैन धर्म को डूबते से राखा। तहाँ प्रथम पट्ट ग्वालियर दजो आमेर तीजो काष्ठा सङ्घ को हासी हिसार