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१७० * लँबेचू समाजका इतिहास था। (देखो भारतीय प्राचीन लिपि माला ) पृष्ठ १५२ टिप्पण ७ ( और ८) अक्षपटलाधीशको ही (पोद्दार) गोत्र कहना चाहिये।
(४) द्रम्म एक चाँदीका सिक्का था जिसका मूल्य चारसे छः आनेके करीब होता था।
(५) रूपक एक छोटा सा ३ रत्तीका चाँदीका सिका होता था
(६) दुर्लभ वीसलदेव विग्रह राज युद्ध कराने वालेको कहते हैं चोहानोंमें ३ दुर्लभ ४ बीसलदेव हुये गुजराती भाटियोंमें इन्हीं दुर्लभको लेकर दुर्लभदास नाम होते हैं। हम जब कि ईडरगढ़ गये थे, अध्यापक की नौकरी की थी, उस समय हालही में केशरी सिंह राणाकी गद्दी पर प्रताप सिंह राणा बैठे थे। ईडरमें भी चोहानोंकी गद्दी थी वहाँ पर्वतका नाम डूंगर था और उसपर जैन मन्दिरोंमें १००० एक हजार वि० संवत् की प्रतिमायें थी करीब ४ फुटकी सफेद सिंह मर्मर पाषाणकी, पर उस समय इतना ध्यान नहीं था जो शिलालेख लाते।
और प्रमार ( परमार ) कुलशेखर देवपाल नृपति