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१५४ श्री लंबे समाजका इतिहास * शुचिवर्मा के पीछे नरवर्मा, कीर्तिवर्मा, योगराज, वैरट, क्रमशः राजगद्दी पर बैठे । वैरट के पीछे हंसपाल राज्य का स्वामी भया। राणपुर के मन्दिर के शिलालेख में उस का नामवंशपाल दिया है पर कुम्भलगढ़ के लेख में हंसपाल ही नाम है । भेराघाट जबलपुर जिले में नर्मदा पर से मिले हुये शिलालेख संवत् कलचूरी ६०७ विक्रम संवत् १२१२ के शिलालख में प्रसङ्ग वशात् मेवाड़ के राजा हंसपाल वैरसिंह और विजय सिंह का वर्णन मिलता है।
कुम्भलगढ़ का शिला लेख अस्ति प्रसिद्ध मिह गोभिल पुत्र गोत्रं तत्राजनिष्ट नृपतिः किल हंस पालः शौर्या वसाजित निरर्गल सैन्य संचः नम्रीकृताऽखिल मिलद्रिपुचक्रवालः (ए० इ० २ पृष्ठ ११।१२) तस्याऽभवत्तनुभवः प्रणमत्समस्त सामन्त शेखर शिरोमणि रंजितां हो श्री वरसिंह वसुधा धिपतिर्विश्रुद्धः