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१६४ लॅबेचू समाजका इतिहास *
भट्टार हरिचन्द्रस्य गद्यवन्धो नृथते
(भट्टार ) भट्टारक जैन मुनिके शिष्य हों या नाटक काव्यादिमें उत्तम श्रष्ट राजा के तुल्य पात्रको भहार कहते हैं। सो हरिचन्द भट्टारक के शिष्य भी होने शके है क्यों कि हरिचन्द ( श्रीवास्तव कायस्थ ) थे और यशोधर चरित भाषा कविताके पद्मनाभि कायस्थ थे उनको ( पझनाभि ) को भट्टारकका शिभ्य लिखा है पद्मनाभि ने जैन पद्मपुराण की रचनाकी है जो आगरा के ताजगंजके जिन मंदिरमें है और यशोधर चरित भाषा पद्यात्मककी भी रचना की है और मारवाड़की तरफ एक पंचोलिया जाति है उसका भी जिकर राजपूताने इतिहास में है हमने पूछाकि पंचोलियाको है तो कोई कोईने कायस्थ वताये और किसीने ( महाजन ) वैश्य बताये ताज्जुब नहीं (पंचोलयों से पंचोलिया जाति हुईहो ) और विक्रम संवत् ७०१ में मेवाड़ चित्तोड़पर मौर्यवंशका राज्य था मौयवंश चन्द्रगुप्तका वंश था ये जेन राजा थे उसके बाद गुहिदत्त गुहिल वंश शीसोदेका राज्य रहा फिर कीर्तिपाल चोहानोंका राज्य रहा जब हम इतिहास देखते हैं तब सर यदुवंश ही पाया जाता