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* लॅबेचू समाजका इतिहास * १६३
तदुक्तं विक्रमप्रवन्धे (गाथा) सत्तरिचदुसग जुत्तो तिणकाले विकमो हवइ जम्मो
अट्ठवरस वाल लीला सोड्स वासे भमिय वीदेसे रस पण बासा रज्जं कुणंतिमिच्छोपदेस संजुत्तो
चालीस वास जिणवर धम्म पालेह सुरपयं लहियं २ आशय श्रीमहावीर तीर्थङ्करके निर्वाण भये ४७० चारिसे सत्तरि वर्ष पीछे विक्रम राजा भयो (विक्रम राजा का जन्म भयो ) ताके पीछे आठ वर्ष पर्यन्त बालक्रीड़ा करी ता पीछे सोलह वर्ष ताई देशान्तर विषे भ्रमण करि पीछे छप्पन वर्ष तक राज कियो नाना प्रकार मिथ्यात्वको उयदेशकरि संयुक्त रह्यो। ____ बहुरिताके पीछे चालीस वर्ष पूर्व मिथ्यात्वको छोड़ जिन वर धर्म कू पालन करि देव पदवी पाई ऐसे विक्रम राजाकी उत्पत्ति आदि कही।
इन्हींके वंशमें भोज आदि थे, तब कोई समय जैनमय जगत था, आठवीं शताब्दीमें हरिश्चन्द्र कायस्थने श्रीधर्म शर्मा भ्युदय जैन महाकाव्य और यशोधर चरित संस्कृत रचना की जिनकी प्रशंसा वाण कवि कादम्बरीमें करते है।