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१६६ * लँबेचू समाजका इतिहास * . अने काहत् प्रतिष्टाप्त प्रतिष्ठैः केहणादिभिः
सद्यःक्ता नुरागेण पठित्वायं प्रचारितः २१ । जिस प्रतिष्ठा पाठको सद्यः तुरन्त ही शीघ्र ही सूक्तानुरागसे श्रेष्ठ कथनशैलीके अनुरागसे पढ़कर अनेक जिनेन्द्र अर्हत्प्रतिष्ठायें कराके या करके पाई है प्रतिष्ठा जिन्होंने ऐसे ( केहणादिभिः ) अणुऽव्ययरयणपदीब ग्रन्थमें कथित ( कहण) कृष्णादित्य लम्बेचू महामन्त्री आदिने या आशाधरजीके शिष्य कलण खंडेलवाल आदिने पढ़कर प्रचार किया। यहाँ दोनोंका सम्बन्ध पाया जाता है, क्योंकि आशाधरजी भी लम्बेच जातिके बघेले गोत्रसे निकास भया। बघेला क्षत्रियोंमेंसे बघेलवार वंशमें श्रीमान पं० आशाधरजी उत्पन्न हुये।
(काव्य) श्रीमानस्ति सपादलक्षविषयः शाकम्बरी भूषण स्तत्र श्रीरतिधाम मण्डलकरं नामास्ति दुर्गमहत् । श्रीरल्यामुत्पादितत्र विमल व्याघ्र खालान्वया च्छोसल्लक्षणतो जिनेन्द्र समय श्रद्धालुराशाधरः । अर्थ-सवालाख ग्रामोंका अधिप ऐसा साम्हर (राज्य)