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*श्री साहिास लिखते हैं पंडित जयानक रचित पृथ्वीराज विजय महाकाव्यमें कि सांभर के चौहान राजा वकिपति राज ( दूसरे ने) अघाट ( आहाड़ ) के राजा अम्बाप्रसाद का मुख तलवार से चीर के युद्ध में मारा। .
आहाड़ के शिला लेख में तस्माद्वापतिराजेन सम्भूतमवनी भुजा कलिः कृती कृतोयेन भूमिश्च त्रिदिवीकृताः ५८ अम्बा प्रसाद माघाटपति यः सेनयान्वितं व्यसृजधशसः पश्चात् पार्श्व दक्षिण दिक्पतेः ५६ भिन्नमम्बा प्रसादस्य येनच्छुरिकया मुखं प्रतापजीविकासृग्भिः सममेवन्यमुच्यत ६०
पृथ्वीराज विजयसर्ग ५ अम्बाप्रसादके पीछे शुचिवर्मा हुआ। रावल समरसिंह के विक्रम संवत् १३४२ के लेखमें तथा राणा कुम्भकर्ण (कुम्भा के ) समय के वि० संवत् १४६६ के सादड़ी ( जोधपुर राज्य के गोड़वाल जिले में ) के निकट प्रसिद्ध राणपुर के जैनमन्दिर के शिलालेख में अम्बाप्रसाद का नाम छोड़कर शक्तिकुमारके पीछे शुचिवर्मा का नाम दिया है। शुचिवर्मा शक्तिकुमार का पुत्र था।