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श्री वेचू समाजका इतिहास * बुद्ध विधिनपरमार्थि जनस्य चोच्चैः (पृष्ठ १२ श्लोक १८/१६) ततः श्री हंशपालश्च वैर सिंहो नृपाग्रणी स्थापितोऽभिनवो येन श्रीमदाटपत्तने १४४ प्राकारश्च चतुर्दिक्षु चतुर्गोपुरभूषितः द्वाविंशतिस्सुतास्तस्य वभुवुः सुगुणालयाः १४५
आशय--उस प्रसिद्ध गोभिल गोत्र में राजा हंसपाल भया जिस के पराक्रम से निरर्गल सैन्य लेकर शत्रुओं को नम्रीभूत किया उस के पुत्र वैरसिंह ( अरिसिंह )भया जिस की विशुद्ध बुद्धि के आगे परमार्थियों की उच्चबुद्धि नहीं थी उस अग्रेसर प्रधान पुरुष अरिसिंह ने एक नवीन प्राकार ( परकोटा ) चारों दिशाओं में चार गोपुर पुर द्वारों से सुशोभित ( आघाट ) आहार क्षेत्र में बनवाया और उसके २२ पुत्र हुये जो अनेक गुणों के निधि थे ( खजाने ) आर चित्रकूट चित्तोड़ उदयपुर राज्य के राजा थे इन्हीं अरिसिंह के पुत्र चोड़सिंह उन के पुत्र विक्रमसिंह के रणसिंह ( कर्ण सिंह ) इन्हीं कर्णसिंह से दो साखा हुई।