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११४ *भी लँबेचू समाजका इतिहास * ४६० वर्ष का पुराना लिखित है। श्रीपचनन्दि मुनि श्री प्रभाचन्द्र आचार्य या दूसरे प्रभाचन्द्र जो १४ शताब्दी में हुये जिन्होंने प्रमितिवाद, युक्तिवाद, अन्यासिवाद, तर्कवाद, नयवाद, यह पाँच ग्रंथ रचे। ये प्रभाचन्द्र भी लँमेच होने शके हैं। प्रशस्ति के अन्त में १७ श्लोक हैं। उनसे पता चलता है कि लम्बकञ्चुक ( लम्बेच गोत्रघर सोमदेव श्रावक थे। उनकी स्त्री सुभद्रा थी। उनके दो पुत्र थे। वासाधर और हरिराज । हरिराज के पुत्र मनःसुख थे। यह ही श्रीपयनन्दि मुनि हुये।
गोत्र का श्लोक है :लम्बकञ्चुक सद्गोत्र नभःसोमोऽसमधु तिः । सोमदेवोऽभवत्साधुन्यलोक शिरोमणिः ।।
आशय लम्बकञ्चुक (लम्बेच) श्रेष्ठ वंश रूपी आकाश में जिनके समान और की युति नहीं भन्य लोको में शिरोमणि साधु श्रेष्ठ शाह सोमदेव हुये। सोमदेव के पुत्र वासाधर और हरािज और हरिराज के पुत्र मनःसुख ये ही पद्मनन्दि मुनि भये और जब श्रीवर्धमान पुराण १५२२ का लिखा है। यह ग्रंथ सूरत के गोपीपुरा मुहल्ला के श्री