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* श्री लंबे समाजका इतिहास *
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दिगम्बर जिन मन्दिर के संस्कृत भण्डार में जिसका प्रबन्ध भाई नगीनादास करमचन्द नरसिंहपुरा करते हैं तो हरिराज के भाई वासाधर ये ही १४ व १५ शताब्दियों में होने चाहिये ।
और श्री वर्द्धमानपुराण का मङ्गलाचरण कितना सुन्दर हैं।
स्वच्छंद क्रीऽतो यत्र चिदानन्दौ परस्परम् । जगत्रयैक पूज्याय तस्मै सिद्धात्मने नमः ॥
भावार्थ - जिस सिद्ध भगवान में ज्ञान और आनन्द स्वच्छन्द हो परस्पर केलि कर रहे हैं। उन तीन जगत में पूज्य सिद्धों को नमस्कार हो ।
जब श्री महावीर स्वामीका जन्म भया तब भगवान् की स्तुति करता हुआ इन्द्र कहता है ।
अचेतना अपि प्रापन् दिशो यत्र प्रसन्नतां । सचेतना कथंनस्युः तत्र सानन्द मानसाः ॥ हे प्रभो आपके जन्म से अचेतन दिशायें सब प्रसन्न हो गईं । अर्थात् कण्टकादि रहित साफ-सुथरी हो गई ।