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१३. मी लॅवेचू समाजका इतिहास * आशय---रचु का बंश ( सूर्यवंश ) जो पहिले (कृतयुग में) काकुत्स्य इक्ष्वाकु और रघु इन तीन पूवरों वाला था वह कलियुग में चाहमान ( चोहान) को पाकर चार पूवर वाला हो गया। एक गोत्र (वंश) में तीन या चार पांच पवर तक होते हैं ऐसा इसी इतिहास राजपूताने के मे लिखा है यहां सबका एक कर दिया सूर्यवंश इक्ष्वाकु चाहान एक हो गये ।
और सौंदरनन्द काव्य का १ सर्ग तथा वायुपुराण के ८८ अध्याय के अनेक श्लोक उद्धृत कर यह भी दिखाया है कि अनेक क्षत्रिय ब्राह्मणत्व को प्राप्त हुए। सूर्यवंशी मांधाता के पुत्र पुरुकुत्स अंबरीष और मुचुकुन्द । और अंबरीष का पुत्र युवनाश्व और उसका पुत्र हारित हुआ। जिसके वंशज अंगिरस हारित कहलाये और हारित गोत्री ब्राह्मण हुए।
श्लोक
तस्या मुत्पादया माम मांधाता त्रीन् सुतान् प्रभुः ॥७॥ पुरुकुत्स मम्बरीषं मुझुकुन्द श्च विश्रुतम् । अम्बरीषस्य दायादो युवनाश्वोऽपरः स्मृतः ॥७२॥