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१३४ *भी लँबेचू समाजको इतिहास * जी से मिलकर जैन बोर्डिंग हीराबाग में आये। तब हमने नाथूराम प्रेमीजी से कहा कि आज तो हम प्यासन मर गए। काही ने हमें पानी की पछी ही नहीं तो प्रेमी जी बोले क्या पानी पी आये। हमने कहा क्या बात है। वे बोले वह पानी जूठा था। हुमड़ और गुजरातियों में जूठ का विचार नहीं वे सब एक गिलास से पानी पिया गिलास जूठा घड़े पर रख दिया। दूसरा आया वह भी पिया और घड़े पर गिलास रख दिया ऐसा करते हैं। तुम ईडर गुजरात जाते हो अपने हाथसे पानी लाना और पीना तो चाहमानता से कितना लाभ हुआ। समझ लो तो लम्बेच जाति आदर बिना कोई चीज ग्रहण नहीं करती थी। और अब भी नहीं करती इसी प्रकार दि. जैन ग्रन्थ महीपाल चरित्र जिसको ओझाजी ने भी इतिहास में प्रमाणता में लिया है । महीपाल सिंहल द्वीप (लंका) (सिलोन) में गये वहाँ एक राज कन्याने इनसे कहा है कि आप हमारे साथ विवाह कर लो। तब महीपाल ने उत्तर दिया है कि तुम्हारे पिता हमसे आदर से कहें तो हम विवाहें ये महीपाल ही माहप न हों, अन्वेषण की बात है; क्योंकि महीपाल