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१४२ *श्री लँबेचू समाजका इतिहास * ६०००० साठि विजयधवल हजार ४०००० चालीस । ये तीनों शास्त्र श्री जिन ( विडी ) बद्री मूलविडी (मूलवद्री) में विराजमान हैं और रत्नमणियों ( जवाहिरात ) की श्री प्रतिमायें भी विराजमान हैं। ते इस काल में पढ़वे सुनवे योग्य नहीं दर्शन योग्य हैं ( यह निषेध सर्व-साधारण के लिये है, परन्तु विशेष ज्ञानी के लिये नहीं)। एक दिन श्री नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती पाठ कर रहे थे। ता समय चामुण्डराय महामण्डलेश्वर राजा घर आया। ताहि देखि मौनावलम्बी भया। राजा बोला कि-भोस्वामिन् ! पाठ समाप्त का कारण कहो । तदि बोलो-तुम को सिद्धान्त पढ़ने की योग्यता नहीं, सो नीतिसारजी में लिखा है।
श्लोकआर्यिकाणां गृहस्थानां शिष्याणा मल्पमेधसां । न वाचनीयं पुरतः सिद्धान्ताचार पुस्तकं ॥
गुप्तिगुप्त के शिष्य चार ४ माघनन्दिता को पारिजात गच्छ वालात्कारगण नन्दीसंघ नन्दी १, चन्द्र २, कीर्ति३, भूषण ४, ये ४ शाखा । दूजा बृषभसेन ताकासेन संघ पुष्करगच्छ सुरस्थगण सेन १, भद्र २, वीर ३, राज ये ४ शाखा। तीसरा देव संघ ताका देवसंघ पुष्कर गच्छ