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१४० * श्री लँबेचू समाजका इतिहास * संघ, ४ सेनसंघ, काष्ठासंघ के कर्ता कुमारसेन भए, मूल संघ के कत्ता गुप्तिगुप्त भए, वर्ष २० लो माधनन्दि, वर्ग १४ लों धरसेन, वर्ण ३० लों पुष्पदन्त, वर्ग २० लों धृतिसेन इनका काल वर्ष ११८ ( यहाँ पर वषों में कुछ
यहाँ से अंगघारी उच्छिन्न भये । यहाँ लग वर्ष सर्व ६८३ भये यहाँ राजा विक्रम का जन्म हुआ। यहाँ से सम्बत्सर चल्या। संवत् ४ में निमित्तज्ञानी भद्रबाहु भये । तिनका शिष्य गुप्तिगुप भये ता समय गिरनगरपुर कोन में उज्जयन्त गिरी की चन्द्रशाला कन्दरा विषं रहते धरसेन माधु चौदह पूर्वी में दुजा आग्रायणीय पूर्व ता में १४ वस्तु को नाम अधिकार। यहाँ अच्यवन लन्धिनामा पञ्चम वस्तु विर्षे प्राभृत नाम अन्तराधिकार है सो पश्चम वस्तु के चतुर्थ कर्म प्राभृत में प्रवीण हैं। ताने अपनी आयु स्वल्प जानि बसुधरा नगरी की श्री गोमट्टदेव प्रति यात्रा को आया । संघ ४ ताको यथोचित व नाम लिखि क्षुल्लक हस्ते पत्र भेज्या। शास्त्र की परम्य राय हेतु सों सर्वसंघ पत्र भेजि बांचि तब भूतवलि पुष्प