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* श्री लॅबेचू समाजका इतिहास * १४१ दंत दोय तीक्ष्ण बुद्धि क्षुल्लक मेज्या सो वे दोऊ आय प्रदक्षिणा देय चरण-कमल में यन्त्र स्थापि प्रणिपति कर मन्मुख बैठि समस्त वृत्तान्त निवेदन करते भये । पाछे श्रीधर सेनाचार्य दोनों को हस्व दीर्घादि हीनाधिक पठन कर परीक्षा निमित्त दोय विधा साधन को दई। तिन्होंने दोय विद्या साधीं । ते दोऊ. विद्या हीनाक्षर पाठ करि दीर्घ दंता आई। तदि अपणा प्रमोद तजि शुद्ध पाठ करते भये । तदि प्रश्रय होय वहु स्तुति वह करती भई। फिर विद्या सिद्ध हुई पाछे गुरु समीप विनय युक्त प्रणाम करि यथाख्यान कहते भये। तदि श्रीधरसेनाचार्य ने अपनी आयुष्य अल्प जानि विचारी। मेरी आयु का इनको बड़ा खेद होयगा। तदि तिनको थोड़े दिन में समस्त आगम ६ खंड श्रवण कराय विदा करते भये । ते दोऊ निज-निज स्थान आय ३ सिद्धान्त की रचना करते भये । ते दोऊ ने ३ सिद्धान्त ताड़पत्र में लिखाये। ज्येष्ठ शुक्ल पञ्चमी को स्थापना करि पूजते भये। ता दिन ते श्रुत पञ्चमी व्रत शुरू हुआ। शास्त्र महाधवल हजार ८०००० अस्सी, जय धवल हजार