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१३२ * श्री लॅबेचू समाजका इतिहास * लिखा है। पट्टावली में तो उन्हें ऋषि या पुरोहित न समझना। जैसे जैनआदि पुराण में श्री ऋषभदेव को ही गौतम कहा है और कुलकर मनु भी कहा है, तो ये प्रसिद्ध मूल पुरुष ठहरे। पुरोहित या ऋषि न रहे २२ तीर्थकरों का गोत्र काश्यप लिखा, तो काश्यपी नाम पृथ्वी का है। उसके साधक क्षत्रिय सब काश्यप ही ठहरे ऐसा समझना ।
अब फिर हम चोहान शब्द का ही विवेचन करते हैं। यहाँ पर भी चाहमान का जो चोहान शब्द भया सो कैसे चा अक्षर को चो किया, चकार में अकार का विकार ओकार किया और हकार के अकार को दीर्घ विकार किया और मा अक्षर का लोप किया तब चोहान बना और चोहान शब्द का अर्थ ( गुण ) मान को चाहनेवाला । तब क्षत्रियों के तो मान ही धन होता है ऐसा साहित्य कान्यादिक में दिखलाया है। तब लम्बेच चोहानों में हैं या लम्बेचुओं में से चोहान हैं। यह बात लम्बेच जाति में घटित है। हम जब १६५५ के संवत् में हाथरस के मेला बिम्ब प्रतिष्ठा में गये थे, तब हम से अलीगढ़ के पं० प्यारेलालजी ( पं० श्रीलाल के पिता) ने पूछा था