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* श्री लॅवेचू समाजका इतिहास * १२६ को सकार कर दिया और सकार को हकार कर दिया तो हिंस का सिंह बनो, तो यहाँ अक्षरों का रद्दोबदल कर दिया वाहुलक से । और षट्दश का षोड़श बनाया, यहाँ टकार के स्थान में उकार और दकार के स्थान में डकार बना कर आद् गुणः सूत्र से गुणा देश कर षोड़श हो गया
ओर पृषत्उदरं यस्य सपृषोदरः इसमें तकार का लोप कर गुणादेश कर पृषोदर हो गया, तो बाहुलक से अपभ्रंश शब्दों की भी सिद्धी होती है, तब लँमेचुहान शब्द में ( लम्बे ) इस भाग को उड़ा दिया और उकार को
ओकार कर चोहान शब्द बना। राजपूताना इतिहास द्वितीय खण्ड में ओझाजी लिखते हैं कि चाहमान शन्द का चोहान शब्द बना।
काश्मीरी पंडित जयानक अपने पृथ्वीराज विजय महाकाव्य में लिखते हैं, राजपताना इतिहास द्वितीय खण्ड ५२४ पेज :-- काकुत्स्यमिक्ष्वाकुरचूंश्च यद्दधत्पुराऽभवन्त्रिप्रवरंरघोःकुलम्। कलावपि प्राप्यसचाहमानतां प्ररूढ़ तुर्यपवरं बभूव तत् ॥
कान्य २७१ श्लोक ।