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१२० श्री लँकेचू समाजका इतिहास चाहिये। क्योंकि यदि राजा मुंज युधिष्ठिर से लड़ा ऐसी महाभारत तथा किंवदन्ती की श्रुति है तो ताज्जुब क्या उस समय यदुवंशी कृष्णादिका कौरवोंसे युद्ध भया ही था। पाण्डवों से भी होने में क्या आश्चर्य ? क्षत्रियों में यह होता ही रहता है। और आसई खेड़ा, मुंज, कुदरकोट के खंडहरों में जैन मूर्तिया हाने से और भी दृढ़ प्रमाण जैनों का प्रतीक है। और मलाजनी रियासत इसकी स्थापना (पड़िहार (प्रतिहार ) वंश भी चोहानों के प्रतीहार और परमारों के प्रतीहार । प्रतीहार नाम द्वारपाल का है सो परमार भी खीची चोहानों में राजपूताने इतिहास में लिखा है। तब प्रतिहार भी क्षत्रिय ही हैं जंगजीतने स्थापना की और पन्ना जो सीपी में है वहाँ का राजा महासिंह से युद्ध हुआ। उसके पुत्र दीप सिंह भागकर आये । सकरोली लाहर आदि से सम्बन्ध किये ये सब शाखा भेद से यदुवंशी क्षत्रिय रहे और जैन संस्कार भी रहे । . और कुदरकोट इसके स्थान से कुदरागोत्र अलल भया। इसमें ६ ब्राम्हणों का कथन आया, सो इनमें लहरिया ब्राम्हणों की जमींदारी करहल जिले में है और