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११८ *श्री लॅबेचू समाजका इतिहास, ___ भोगीराय का कवित्त पुराना कहता है।
जो रावत गोत्रका है साम्हरी नरेश भरअपाल आगे गाँव थाप प्रथम चन्दवार
सिद्धि देवतान गाई है। दई है नवल प्रसादी जके रीड़ित दई सामन्ती सपूती शिर
____ पाई है। बदन नरेश जीत पत्र लीनो रावत रजले हरि कैसी शक्ति
छाई है। थापा राहुल पति सो नीति गुपाल सिंह शाखि शाखिहोतई
अनेरी रीति आई है। इससे साबित होता है कि राजा भरतपाल साम्हरी नरेश कहलाते थे। जो अणुब्बय पईव ग्रंथमें भरतपाल से चोहान वंश दिखाया है। ये लॅवेच समाज के रावत गोत्र के थे। और अनेक प्रतिष्ठाकारक हाउली राव रावत गोत्र में भये इससे सारे जैन समाज को अजैन लोगोंने साहु कह कर बनिये कह दिये । और जैन समाज भी बनिये कहने लगे। नहीं तो क्या संसार में कभी अभीर उमराव राजा और कभी गरीब निर्धन देव से होता है। जब
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