SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 121
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * श्री लंबे समाजका इतिहास * ११५ दिगम्बर जिन मन्दिर के संस्कृत भण्डार में जिसका प्रबन्ध भाई नगीनादास करमचन्द नरसिंहपुरा करते हैं तो हरिराज के भाई वासाधर ये ही १४ व १५ शताब्दियों में होने चाहिये । और श्री वर्द्धमानपुराण का मङ्गलाचरण कितना सुन्दर हैं। स्वच्छंद क्रीऽतो यत्र चिदानन्दौ परस्परम् । जगत्रयैक पूज्याय तस्मै सिद्धात्मने नमः ॥ भावार्थ - जिस सिद्ध भगवान में ज्ञान और आनन्द स्वच्छन्द हो परस्पर केलि कर रहे हैं। उन तीन जगत में पूज्य सिद्धों को नमस्कार हो । जब श्री महावीर स्वामीका जन्म भया तब भगवान् की स्तुति करता हुआ इन्द्र कहता है । अचेतना अपि प्रापन् दिशो यत्र प्रसन्नतां । सचेतना कथंनस्युः तत्र सानन्द मानसाः ॥ हे प्रभो आपके जन्म से अचेतन दिशायें सब प्रसन्न हो गईं । अर्थात् कण्टकादि रहित साफ-सुथरी हो गई ।
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy