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८२ • भी लँबेचू समाजका इतिहास * कि उसमें जैन ग्रन्थ अवश्य होंगे। हमको मालूम भी न था। एक संस्कृत पंडित नोकर थे। हम गये हमको श्रीमान् वैद्यराज दया चन्द जैन गोलालारे के सुपुत्र ने कहा था लिवा गये थे।
हमारे साथ श्रीमान् वैद्यराज आयुर्वेदाचार्य छोटेलाल वैद्य तथा श्रीपाल जी श्रीमान् प० ब्रह्मचारी नन्दब्रह्मजी गये थे पर चाबी न मिली लौट आये। उस किले में मिंड के रास्ते में अगाड़ी चल के एक नशिया जी (निषद्या ) दिगम्बर मुनियों का आश्रम स्थान भी है। जिसमें श्री विजय सागर जैन मुनि के चरण हैं ( चरण पादुकाएं हैं )। जिसका कुछ एक जिन मन्दिर का जीर्णोद्वार श्रीनान् वाबू मुन्नालाल द्वारका दास ( लम्बेच पोद्दार) फार्म के मालिक बाबू सोहन लाल; कलकत्ताने भी कराया है और वहाँ के प्रबन्ध कर्ता श्रीमान् लाला लक्ष्मण प्रसाद जी जैन अग्रवाल हैं। वे भी सेवा करते है। उन्होंने भी कुछ सुधराया हो तो हमें मालूम नहीं वे भी धनपात्र हैं। भक्तिमान जैन है। इसका मुख्य उद्धार का श्रेय पू० श्रीमान् ब्रह्मचारी शीतल प्रसाद जी को है। उन्होंने