________________
* श्री लँबेचू समाजका इतिहास * १०७ राजा चन्द्रपाल ने राज्य प्राप्त करने के बाद जिन प्रतिष्ठा कराई स्फटिक के चन्द्रप्रभ भगवान् की। जो अब भी चन्द्रप्रभ कं जिन मन्दिरमें विराजमान हैं। अणुवय प्रदीव ग्रन्थमें लिखा है जब चोहानोंका राज था तब भरतपाल से लेकर आहब मल्ल तक पांच पीढ़ी तक प्रधान ( मंत्री ) भी लम्बेच ( चोहान ) वंश ही था। हल्लण से लेकर करण ( कृष्णादित्य तक ) इनको वणिकपति ) का अर्थ वणिजो ( वनियांका ) स्वामी इस अर्थ से बनिये कैसे समझ लिये ? ब्राह्मणों ने जैन समाज को बनिये बता दिये । या व्यापार वृत्ति से बनिये कहने लगे। सो बनिये नहीं जैन समाज अधिकतर क्षत्रिय वंश है। तिसमें लम्बेचुओं कोतो क्षत्रिय व वंशावली पट्टावली जिनप्रतिमा लेखः ताम्र पत्र लेख, राय भाटों की कविता, राजपूताने के इतिहास, इटावा गजटियर देश नाम आदि अनेक प्रमाणोंसे प्रमाणित है। और लम्बेचू यदुवंशी क्षत्रिय चोहान वंश हैं। लम्बेचू से चोहान, लम्बेचू चोहान हैं ऐसा सिद्ध है। शब्द व्युत्पत्ति से भी लम्बेचूहान से तथा चाहमान से चोहान शब्द व्युत्पन्न हुआ। इस गजटियर से भी प्रमाणित हैकि चन्दवार इटावा मूञ्ज आसईखेड़ा आदि में चोहानों का