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* श्री लँबेचू समाजका इतिहास * १०५ ३१ वर्ष हुए हमने देखा था। अभी फिर वहाँ गये तो सवारी की दिक्कत से रात्रि हो गई। दीपक से देखा जो पहिली प्रतिमा ११ सवा फुट की श्याम पाषाण की चन्द्रप्रभ भगवान् को उसका लेख इस प्रकार है
श्री सम्बत् १२०१ जेठ सुदी त्रयोदशी सोमे लम्बकञ्चुकान्वये साधु खुदालहिपिकं क्षत्रदेव चन्द्रण प्रतिष्टापितम् ।
यह अँगाड़ी रखी हुई प्रतिमा का लेख है । और इसके पीछे दूसरी प्रतिमा का लेख दूर से इतना ही पढ़ा गयासं० ११५३ जेठ वदी १३ और लेख अगाड़ी प्रतिमा के आड में था। स्नान करने की जोगाई न थी। जो स्नान करके देखते ६ बजे रात्रिको लौटना था। इन प्रतिमा पर संवत् ११५३ और १२०१ की प्रतिमा में एक ही चन्द्रदेव लिखा है सो या तो ४७ वर्ष के अन्तर तक उन्हींका राज्य रहने शके हैं या चन्द्रदेव कोई दूसरे चन्द्रदेव राज्य गद्दी पर बैठे हों। तो चन्द्रप्रभ भगवान की मूर्ति लम्बेचुओं की प्रतिष्ठा कराई है ही। तब राजा चन्द्रपाल को पल्लीवाल किस आधार पर लिखा ? राजा चन्द्रपालसे