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* श्री लँबेचू समाज का इतिहास #
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चन्दजी रपरिया मुरेना से गये थे । उनकी फोटो भी लाये थे और तालाब में एक पीले पाषाण की सुन्दर मूर्ति पड़ी थी और माता के मन्दिर में यक्ष यक्षिणियों की मूर्तियों से अज्ञानी लोगोंने भीति उठा दी है । उस माता के मन्दिर के चारों तरफ जैन मूर्तियां रखी थी । स्यात् मेरा ख्याल ह एक १ तथा दो शताब्दी या ११।१२ शेताब्दी की मूर्तियाँ थीं । इसी भाष्कर १३ वें भाग में उसी कनकसुत के लेख के नीचे एक देशी पाषाण की बादामी रंग की ३ तीन फूट की मूर्ति सं० १०५३ बैसाख सुदी ३ रामासिंह हारूल इतना ही लेख है और व्यस्त लेख है फिर पं० जगन्नाथजी ने लिखा है पेज ८ में चन्दवारमें ५१ जैन प्रतिष्ठायें हुई हैं। पन्द्रहवीं और सोलहवीं शताब्दी में एक पाषाण की श्यामवर्ण २ फूट की प्रतिमा ।
सिद्धिः सम्वत् १४४८ वर्षे ज्येष्ठ सुदी १५ शुक्रं काष्ठा संधे मथुरान्वये पुष्करगणे प्रतिष्ठाचार्य श्री अनन्त कीर्ति देवाः इन्द्र रामचन्द्रदे लम्बकञ्चुकान्वये श्रीचन्द्रपाट दुर्गे निवासितः राउत गओ पुत्र महाराजा तत्पुत्र राउत होत भी तत्पुत्र चन्नीदेव तद्भार्या भट्टो तयोः पुत्रः साधुः