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* श्री लँबेचू समाज का इतिहास * ८६ चौहानों से अधिक इन लोगों का प्रभाव जम गया। भदौरिया राजपूतों को अपने उत्कर्ष का अवसर शाहजहां के शासन काल में मिला । कुछ लोगों का मत है कि सातवीं शताब्दी में भदौरिया राजपूत अजमेर की तरफ से आये । कुछ लोगों का कहना है कि ये चन्दवार के चौहान राजपूत हैं जो कालोतर मैं भदौरिया कहलाने लगे। १८०५ में भदोरिया राजपतों के मुखिया ने अंग्रेजों के विरुद्ध इटावे में बगावत की थी इसके कारण उन्हें जिले से निर्वासित करदिया गया। उन्हों ने बड़पुरा नामक गांव में शरण ली । भदौरिया बड़पुरा के अपने बंशजो को इसी कारण आज भी अग्रपूज्य मानते हैं।
इटावे में कछवाहा राजपूतों की भी काफी संख्या है। ये राजपूत औरैया और विधूना में फैले हुये हैं। इस बंश के एक व्यक्ति ने रोहतासगढ़ का प्रसिद्ध किला बनवाया था । ११२६ ई० में कछवाहों ने ग्वालियर राज्य के नरवर नामक स्थान को अपनी राजधानी बनाया। कहते हैं इसी वंश के एक व्यक्ति ने जयपुर राज्य की नींव डाली थी। कालांतर में नरवर के कछवाहा शासक ग्वालियर