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* श्री लँबेचू समाजका इतिहास #
राज्य के लहार नामक स्थान में चले आये और यहीं आकर बस गये, जिसके कारण लहार के आसपास का स्थान अभी तक कछवाहगढ़ या कछवाह घार कहलाता है ।
रियासत परतापनेर इटावे की सबसे प्राचीन बड़ी जमींदारीहैं । इस रियासत के २१ मुस्लिम मौजे इटावा जिले में हैं और इस रियासत के कुछ गाँव मैनपुरी जिले में भी है। परतापनेर के चौहान शासकों का इटावा, एटा और मैनपुरी में सदियों तक दबदबा रहा है। कहते हैं सन् १९६३ ईस्वी में दिल्ली के चौहान राजा पृथ्वीराज की मृत्यु के बाद करन सिंह सिंहासन पर बैठे। करन सिंह पुत्र हमीर सिंह ने रणथंभोर के किले की नींव डाली । कालांतर में वे इस किले की रक्षा में ही मारे गये । इनके पुत्र उद्धव रावने ६ विवाह किये जिससे १८ संतानें हुई । उद्धव राय जब मरे तो राज्य का नामोंनिशान मिट चुका था। उनकी संतानें अपने लिये उपयुक्त स्थान की खोज में थीं। उन दिनों कानपुर, फरुखाबाद, एटा, इटावा और मैंनपुरी में मेव लोगों की तूती बोल रही थी । सुमेर सिंह ( जो उद्धय राय के होनहार बेटे थे) ने एक
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