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*श्री लँबेचू समाजका इतिहास *
कहा जा सकता है। इस पत्र में लिखा गया है कि हरिवर्मा के पुत्र तक्षदत्त ने अपने पिता के संस्मरण में यह ब्राह्मणों के वास के लिये दिया। इसमें पहले उन ६ ब्राह्मणों का नाम है जो वहाँ रहते थे। राजा के नाम का कोई उल्लेख नहीं है। इसकी लिखावट स्थानीय महत्व की है। कहा जाता है कि कुदरकोट से कन्नौज तक एक भूमिगत मार्ग था। इस मार्ग में जाने का छोटा रास्ता जो अब भी स्थित है पाताल दरवाजे के नाम से प्रसिद्ध है। कोई भी इस मार्ग में नहीं गया है । एक कहानी है कि एक फकीर ने इसके रहस्य को जानने का प्रयत्न किया। एक बत्ती और खाना लेकर और एक लम्बी रस्सी अपने हाथ में लेकर वह यहां उतरा ३ दिन ३ रात यह रस्सी ढीली जाती रही और फिर रोक ली गई। तब से फकीर और रस्सी के विषय में कुछ पता न चला। ___ यह किला जिसका भग्न अब भी खेड़ा पर स्थित है वह अवध के गवर्नर अलमास अली खाँ जिसकी कचहरी यहाँ थी उसके द्वारा बनाया गया था। इसमें १६