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८१ * श्री लँबेचू समाजका इतिहास * वसाया हुआ आशई खेड़ा ग्राम है। किलो है इटावा से ४ पाँच मील आशई खेड़ा ग्राम है। जहाँ एक जगह किले के खेतरूप प्रदेश में तीन जैन मूर्ति गढ़ी हुई खड़ी हैं । हम देख आये हैं जमुना के किनारे पर और भिंडकी रास्ता पर चुंगी घर के पास सुमेरु सिंह का किला है और एक जिन मन्दिर बड़ी ऊँचाई पर है।
और शिखर कलश सहित है जो इस समय अजैनों के हस्तगत है। त्रिकुटी के महादेव का मन्दिर कहने लगे हैं। जब श्रीमान् ब्रह्मचारी शीतल प्रसाद जी आये थे; तब उसमें टूटी-फूटी जिन मूर्तियाँ रखी थीं, उन्होंने देखकर कहा लोग दर्शनार्थ गये आने जाने लगे भबड़ मचाया ( हल्ला) तब जिन्होंने बड़के नीचे सीडिये हैं। वहां की सिड्डियों पर श्लोक लिखाये है। उन पंडित बलदेव प्रसाद वैद्य कान्यकुब्ज आदि वैष्णवों को भय हो गया कि ये लोग दावा न कर बैठे। श्री जिन मूर्तिये अन्यत्र कर दी उस मन्दिर के पेटे एक विद्यापीठ स्थान है जिसमें बृहत् संस्कृत पुस्तकालय है । वह हर किसीको दिखाया नहीं जाता; सैकड़ों प्राचीन ग्रन्थ सुनते हैं। अनुमान होता है