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* श्री लॅबेचू समाजका इतिहास * ५३ श्री मद्भट्टारक राजेन्द्र भूषणजी देवास्त दुपदेशात् लम्बकञ्चु कान्वये तीनमुनैय्या गोत्र शाह जीवनदासस्तत्पुत्र श्चन्द्रसेनिस्तत्पुत्रः सीतारामस्तत्पुत्रः खड़गसेनिस्तद् भ्राता उदयराज स्तत्पुत्रौ पुरुषोत्तमदासलक्ष्मीचन्द्रौ तैः वाराणसी नगरे प्रतिष्ठा कृता कोरिता । ऐसा लेख प्रायः सब प्रतिमा ओ और यन्त्रों पर है।
इसप्रकार ४६ गोत्र प्रसिद्ध है १ लँबेच १७५३६६६६ दीनार ( मोहर ) का स्वामी था उसने धनका मद किया तत्पश्चात् लम्बेचओंके संघमें कोट्यधीश नहीं हुआ।
इस पट्टावली में श्रीमान् पं० उलफति रायजी संघई द्वि०नाम पं० नगपालजी भिण्डसे उपलब्ध बंशावली से इस प्रथम सोनीसत्ताके ७ सत्ताओंका विशेष कथन है और उनके वंशधरोंके नाम हैं और कुछ कुछ नामों में भेद भी पाया जाता है। _____ अब दूसरी जगह से प्राप्त बाबू उलफतिराय जी संघई करहल द्वारा तीसरी उपलब्ध वंशावलीका जिससे कुछ और भी पुरातन इतिहास की गंभीरता और विशेषता मालूम होती है। उसका ब्योरा लिखते हैं।