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* श्री लँबेचू समाजका इतिहास * ५७ स्कार किया और दीक्षा ली मुनि पद धारते ही चार ज्ञान हुये मति श्रुत दो ज्ञान तो सब जीवोंके होते ही हैं । अवधि
और मनःपर्ययय दो ज्ञान उत्पन्न और भये अर्थात् अवधि ज्ञानावरण मनःपर्यय ज्ञानावरण दोनों आवरण हट गये तब अवधि ज्ञान मनापर्यय ज्ञान प्रगट भये। तब गौतम गणधर भये श्रीमहावीर भगवान की वाणी खिरी मेघ गर्जनावत निरक्षरी सब के कानोंमें पहुंचते ही अपनी २ भाषारूप परिणम जाती है तो जैसे गौतम स्वामी जैन ऋषि भये ऐसे ही और भी होंगे। ___ श्री चोवीसतीर्थक्करोंके १४५३ चोदह सौ पन गणधर गणेश भये। इन्होंमें ये भी हों ता आश्चर्य क्या श्रीमान् गौरीशंकर हीराचन्द ओझा जो ६२ भाषाके जानकार थे जिन्होंने उदयपुरका इतिहास लिखा । पचीसों संस्कृत काव्य और फारसी उर्दू तवारीखे तथा मुहणोत नेणसी आदि क्षत्रिय राजाओं की लिखी हुई ख्यातें तथा अंग्रेजी तथा टाँड साहब आदि लिखित टाड राजस्थान आदि की ऐतिहासिक गलतियाँ लिखी हैं और भाटों की ख्याते पृथ्वीराज वीरविनोद अकबर नामा आदि रासे