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* श्री लँबेचू समाजका इतिहास * ये ही मुनि जैनसिद्धान्तके प्रथमानुयोग शास्त्रोमें जैन थे । ऐसा भी विदित होता है जैसे अष्टादश वैष्णव सिद्धान्तके पुराणों के कर्ता गौतम ऋषि प्रथम अवस्था गृहस्थाश्रममें अजैन थे और श्री १००८ श्रीमहावीर स्वामीके मुख्य प्रसिद्ध प्रथम गणधर हुये इसका कुछ वृत्तान्त ऐसा है कि जब महावीर स्वामीको केवल ज्ञान हुआ और वाणी न खिरे तब इन्द्र ने अवधि ज्ञानसे मालूम किया गणधर बिना वाणी नहीं खिरती तब इन्द्र ने
काज्यं द्रव्यषट्कं नव पदसहितं जीव षट्काय लेश्याः यञ्चान्येचास्तिकाया व्रतसमितिगति नचारित्रभेदाः इत्येत्तन्मोक्षमूलं त्रिभुवनमहितं प्रोक्तमर्हद्भिरीशैः प्रत्येति श्रद्दधाति स्पृशतिचमतिमान् यः सर्वशुद्धदृष्टिः १
यह श्लोक लिखकर एक देवको वालक का रूप धारण कर उस श्लोक का अर्थ पूछने गौतमजी के पास मेला पूछा तो उसका अर्थ श्री पं० गौतमजीसे सम्बन्ध बिना मालूम भये अर्थ नहीं लगा। तब झुंझला कर उन्होंने कहा तुम्हारे गुरू के पास ही चलते हैं। वहीं आये श्री वीर भगवानके समव सरण के आगे मान स्तम्भ का दर्शन करते ही मानगलत भया समवसरणमें भीतर जाकर नम