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*श्री लॅबेचू समाजका इतिहास * ५५ गुरहा ४० माहोसाहू ४१ टाटेबाबू ४२ कोलिहा ४३ जखेमिहा ४४ हरोलिया ४५ दीद वावरे ४६ जेतपुरिया ४७ रुहिया ४८ मुरहइया ४६ वधेला ५० वलगैय्या ५१ सलरैय्या ५२ कोलिहा ५३ देमरा ५४ गगरहागा ५५ हिंडोलिहा ५६ सिंहीपुरा यह छप्पन तो अब मौजूद है। २८ बरबाद हो गये तासोतिन के नाम हू नहीं लिखे यह ८४ अलल भई।
यद्यपि इन वंशावलियोंमें ऐतिहासिक दृष्टिसे विशेष प्रामाणिक और क्रमबद्ध और विशेष वृत्तान्त सम्बन्धित पूर्वलिखित ही मालूम होती है तो भी उसके सिवाय उपर्युक्त वंशावलियोंमें भी उस प्रथम वंशावली से कई विशेष वृत्तान्त और ऐतिहासिक गूढ़ रहस्य इसमें उपलब्ध हैं और राधकाभाव से सम्भावित विशेष प्रमाणता भी पाई जाती है। इस वंशावलीमें गौतम, भारद्वाज बशिष्ठ इत्यादि जो गोत्रक है उन नामो के धारक यातो पूर्वज वंशधर हुये और या इन नामोंके कोई तो वंशधर हुये और कोई गुरू हुये उनके नामसे गोत्र हुये और गौतम भारद्वाज वशिष्ठ ये सब जैन ऋषि हुये ऐसा मालूम होता है क्योंकि