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* श्री लॅबेचू समाजका इतिहास * बुढेले गोत्रसे एक बुढेले जाति हो गई। श्रीमान् पंडित आशाधरजी वघरवाल थे। ये भी वघेलेमें से होंय, तो क्या आश्चर्य । वबेले ठाकुरोंके गोत्र तपासनेसे पता चले। ओझाजीने गुहिलोको सूर्यवंशी लिखा है, कोई विशेष विवरण नहीं दिया। मुझे तो यदुवंशकी ही शाखा मालूम होती है। क्योंकि लँबेचू वंशावलीमें भत्तले काँकर भत्तेले गोत्र है। यह भत्तले गोत्र भर्तृ भटका अपभ्रंश होने शके हैं और काँगा राणाके वंशके भटसे या कांकरोली गाँवके नामसे काँकर भत्तेले हो गया हो। इसका जिकर इतिहासमें आया है। कांकरोली रोड स्टेशन है । चित्तोरके तरफ ४८० पेजमें भर्तृ पुरीय मटेवरगच्छका जैनाचार्यका कथन भी है। बहुत गोत्र देशकी अललसे हैं देशकी अलल भी किसी विशेष पुरुषको लेकर हैं। जैसे रतनपालसे रपरिया और रपरी वसाई तिससे रपरिया, राजा चन्द्रपाल चन्द्रसेनसे चन्दोरिया और (चंदपाट चंदवार ) वसाई तासे चंदोरिया भये। इसी प्रकार पुरोहित और ऋषियों से गौतमादि गोत्र कहै। बशिष्ट ऋषि भी जैन श्रद्धालु होय तो क्या अन्देशा है। उन्होंने अपने योग वाशिष्ठ ग्रन्थमें लिखा है कि