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* श्री लैंवेचू समाजका इतिहास * ५६ सिंह (सांगा) से वि० सं० १५८४ की सालमें १५८४ से ८८ तक जब बावर बादशाह के साथ लड़ाई छिड़ी तव राणा संग्रामसिंह ( साँगा ) के सहायतार्थ अनेक राजा पहुँचे। तब अन्तरवेदसे चन्द्रमाण और मणिकचन्द दो चोहान सरदार सेना लेकर गये और इनमें कोठारिया (भण्डारिया), वेदला आदिकी प्रशंसा लिखी है। ये उस लड़ाईमें मारे गये। 'हाड़ा' हाड़ोती (हाड़ावती) हड़दाके चोहान वंश है और (मण्डल) गुजरात, गिरनार प्रदेशके राज्यके राजा मण्डलीकको राणा कुम्भा (कुम्भकर्ण) की बहिन रमाबाई ब्याही थी। वह मण्डलीक उसको तंग करता था। तब पृथ्वीराज उस मण्डलीकके पास समझाने गये इत्यादि ।
जटाजूट कथनसे परस्पर विवाह सम्बन्ध थे और गुहिल वंश तथा चोहान वंशका घनिष्ठ सम्बन्ध था और निकटतासे राणा कहे जाते थे। मण्डलीक राजा चोहानों में कहा-श्री गिरनार पर्वतपर बीसलदेव मण्डलीकके बन वाये श्री जिनमन्दिर लिखे हैं श्री जैन सिद्धान्त भास्करमें अणुव्वयवदीपके अमें राय-रणमल्ल राठोर भी यदुवंशकी