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५८ भी लँबेचू समाजका इतिहास * जिन्होंने देखे इन सबका उल्लेख उदयपुर इतिहास द्वि० खण्ड और प्र० खण्डमें किया है। वे लिखते हैं कि क्षत्रियों के गोत्र कुछ तो वंशधरों से हुये कुछ पुरोहित ऋषियोंसे हुये और पीढीमें साखायें बदलने पर भी विवाह सम्बन्ध भी होने लग जाते। उन्होंने रणथंभोरके हमीर अर्थात् चन्दाने शाखावाले चोहान की पुत्री जो अरिसिंह को व्हाही थी, उसके पुत्र हमीरको और मालदेवचोहान जोउदयपुर मेवाड़के राजा थे उनकी पुत्री हमीरको व्याही और सिंहल द्वीप (सिलोन) लंकाके राजा हमीर चोहानकी पुत्री भीमसिंह राणाको व्याही । इत्यादि कथनसे चोहानों का और गुहेल वंशीय शीसोदे राणाओका सम्बन्ध और राज्य बहुत २ दूर तक था। सोनगरेलम काश्चन (लाँवा) बृदीमें चोहानोकी एक शाखा हाडोकेचोहानोका राज्य था। नारनोल, अजमेर गुजरात वृन्दावती बूंदी मेवाड़, रणथंभोर, मंडोर, (मंडावा) संचालक, जालोर, चित्तोर, मालवा, बंदी इन प्रदेशों में सब जगह चोहानोका राज्य रहा और उन्हींमेंसे अन्तरवेद इटावा, चंदवाड़ आदिमें राज्य रहा । गंगा जमुनाके बीचके प्रदेशोंको अन्तरवेद कहते हैं । जब राणा संग्राम