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आगम विषय कोश-२
अंतेवासी
सहायता विनय के चार प्रकार हैं- १. अनुलोम वचन मत्तग-विज्जोसहाहारे य अहाथामंअब्भुट्टेति। अणिस्सतो२. अनुलोम कायक्रिया ३. प्रतिरूप कायसंस्पर्श ४. सर्वार्थ वस्सितेति-निस्सा रागो, उवस्सा दोसो। (दशा ४/२३, चू) अप्रतिलोमता।
जैसे राजा मंत्री आदि को राज्यभार सौंपकर (राज्यचिंता ये चारों प्रतिरूप विनय के प्रकार भी हैं। (द्र विनय) से मक्त होकर) भोग भोगता है. वैसे ही आचार्य भी अपना वर्णसंज्वलनता विनय के प्रकार
भार दसरे आचार्य (शिष्य) को सौंपकर निश्चित हो जाता है। ..."वण्णसंजलणता चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा- आचार्य पर भार रहता है-सूत्र और अर्थ की वाचना देना तथा आहातच्चाणं वण्णवाई भवति, अवण्णवातिं पडिहणित्ता गण की चिन्ता करना। भार सौंपने के पश्चात् यह सारा कार्य भवति, वण्णवातिं अणुवूहइत्ता भवति, आया वुड्डसेवी शिष्य (आचार्य) संपादित करता है। गच्छ के लिए जो-जो यावि भवति॥
(दशा ४/२२) करणीय होता है, वह सारा शिष्य करता है। यह भारवर्णसंज्वलनता विनय के चार प्रकार हैं
प्रत्यवरोहणता है। १. यथातथ्य गुणों का वर्णवादी होना।
उसके चार प्रकार हैं२. अवर्णवादी को निरुत्तर करने वाला होना।
१. असंगृहीत-संगृहीत-रुष्ट अथवा असंयम में प्रस्थित शिष्य ३. वर्णवादी के गुणों का अनुबॅहण करना।
को संगृहीत-संयम में स्थापित करना।
२. शैक्षआचारग्राहिता-शैक्ष शिष्य को आचारविषयक प्रशिक्षण ४. स्वयं वृद्धों अथवा आचार्य की सतत पर्युपासना करना।
देना । प्रतिलेखन, आवश्यक, भिक्षा, सूत्रपाठ आदि की विधियां भारप्रत्यवरोहणता विनय के प्रकार
बताना। ..."भारपच्चोरुहणता चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा- ३. साधर्मिक वैयावृत्त्य-ग्लान साधर्मिक के वैयावृत्त्य में असंगहियपरिजणं संगहित्ता भवति, सेहं आयारगोयरं
यथाशक्ति प्रवृत्त होना---उद्वर्तन, मात्रक, वैद्य, औषधि, आहार गाहित्ता भवति, साहम्मियस्स गिलायमाणस्स अहाथाम
आदि की व्यवस्था करना। वेयावच्चे अब्भनेत्ता भवति, साहम्मियाणं अधिकरणंसि अधिकरण शासन_मार्मिकों में पाया कल उपन उप्पन्नंसि तत्थ अणिस्सितोवस्सिए अपक्खगाही मज्झत्थ- होने पर निजी शिष्य और प्रतीच्छक के प्रति अनिश्रितोपश्रितभावभूते सम्मं ववहरमाणे तस्स अधिकरणस्स खामण
निश्रा और उपश्रा से मुक्त, निष्पक्ष होकर मध्यस्थभाव से विओसमणताए सया समियं अब्भुढेत्ता भवति, कहं नु सम्यक् व्यवहार द्वारा उस कलह के क्षमापन और शमन के साहम्मिया अप्पसद्दा, अप्पझंझा अप्पकलहा अप्यतुमंतुमा लिए सदा सम्यक अभ्युत्थान करना। निश्रा का अर्थ है-राग संजमबहुला संवरबहुला समाहिबहुला अपमत्ता संजमेण और उपश्रा का अर्थ है-द्वेष। तवसा अप्पाणं भावेमाणाणं एवं च णं विहरेज्जा?
साधर्मिक कोलाहलपूर्ण शब्दों से मुक्त, वाचिक कलह भारपच्चोरुहणता-जधा राया अमात्यादीनां भारं से मुक्त, झगडे से मक्त, तं-तं से मक्त, संयमबहल, न्यस्य भोगान् भुंक्तेजधा वा आयरिएण अण्णस्स आयरि- संवरबहल, समाधिबहल, अप्रमत्त तथा संयम और तप से यस्स भारो पच्चोरुभितो, एवं आयरियस्स सत्तत्थगण- अपने को भावित करते हुए कैसे विहरण करें? इसके लिए चिंतणाभारो. तं सीसोचेव सव्वं जं जंकायव्वं गच्छस्स अभ्यद्यत रहना। तं तं करेति।"""असंगहितो रुट्ठो वाहिरं भावं वच्चति तं
* सुविनीत अंतेवासी के कर्त्तव्य..... द्र. श्रीआको १ शिष्य संगेण्हति।पडिलेहण-आवस्सग-भिक्खपाढादिगाहेति। समाणधम्मिओ साधम्मिओ, गिलाणो असुहिओ, आगाढा- अगुरुलघु-भारहीन द्रव्य, वे द्रव्य जिनके पर्याय न गुरु णागाढेणं अधाथामं जधासत्तीए वेतावच्चं उव्वत्तण
होते हैं और न लघु। द्र द्रव्य
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