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पिंडनियुक्ति
अनेक ग्रंथों में समान अंश को देखकर आज यह निर्णय करना कठिन हो जाता है कि कौन किससे प्रभावित हुआ है तथा तद्विषयक सबसे प्राचीन उल्लेख किस ग्रंथ का है। पिण्डनियुक्ति की अनेक गाथाएं प्रकरण रूप में या विषय-व्याख्या के रूप में अन्य ग्रंथों में संक्रान्त हुई हैं। यहां पिण्डनियुक्ति का परवर्ती साहित्य पर क्या प्रभाव पड़ा, इस संदर्भ में कुछ बिन्दु प्रस्तुत किए जा रहे हैं• पिण्डनियुक्ति में पिण्ड शब्द की विस्तृत व्याख्या प्रासंगिक है लेकिन ओघनियुक्ति में पिण्ड से सम्बन्धित चालीस गाथाएं' पिण्डनियुक्ति से उद्धृत की गई हैं, ऐसा प्रतीत होता है क्योंकि वहां पिण्ड की व्याख्या का प्रसंग नहीं है। • उद्गम और उत्पादना के दोष श्वेताम्बर परम्परा से दिगम्बर परम्परा में संक्रान्त हुए हैं। पंडित सुखलालजी मूलाचार को संकलित रचना मानते हैं अत: बहुत संभव है कि मूलाचार में भिक्षाचर्या वाला प्रकरण पिण्डनियुक्ति से प्रभावित हुआ है। यद्यपि वहां अनेक स्थानों पर दोषों के नाम एवं क्रम में अंतर है, गाथाएं भी समान नहीं हैं लेकिन विषय और नामों की दृष्टि से यह प्रकरण पिण्डनियुक्ति से प्रभावित है, यह कहा जा सकता है। पिण्डनियुक्ति में जहां अष्टविध पिण्डनियुक्ति का उल्लेख है, वहां मूलाचार में अष्टविध पिण्डशुद्धि का संकेत है। प्रकरण को देखते हुए ऐसा संभव नहीं लगता कि पिण्डनियुक्तिकार मूलाचार से प्रभावित हुए हों।
__ वर्तमान में दिगम्बर और श्वेताम्बर की भिक्षा-विधि के आधार पर भी यह कहा जा सकता है कि उद्गम, उत्पादना और एषणा सम्बन्धी भिक्षाचर्या के दोष श्वेताम्बर आचार्यों द्वारा निर्धारित किए गए हैं। दिगम्बर आचार्यों ने प्रथमानुयोग और कर्मवाद पर अधिक लिखा अत: व्यावहारिक आचार-मीमांसा का विशेष वर्णन मूलाचार और भगवती आराधना के अतिरिक्त अन्य ग्रंथों में कम मिलता है।
निशीथभाष्य में उत्पादना से सम्बन्धित १५२ दोषों का लगभग ९७२ गाथाओं में वर्णन हुआ है। लगभग गाथाएं पिण्डनियुक्ति से अक्षरशः मिलती हैं। कुछ गाथाएं बीच में भाष्यकार द्वारा भी बनाई गई हैं। उदाहरणार्थ पिनि २०५ (निभा ४४०६) गाथा के लिए निशीथ चूर्णिकार ने 'इमा भद्दबाहुकया गाहा" तथा इसके बाद की दो गाथाओं के लिए 'एतीए इमा दो वक्खाणगाहाओ' का उल्लेख किया है। इस संकेत से स्पष्ट है कि निशीथ भाष्यकार ने इन गाथाओं को अपनी व्याख्या का अंग बनाया है। चूर्णिकार ने अनेक स्थलों पर पिण्डनियुक्ति का उल्लेख किया है, यहां कुछ संदर्भ प्रस्तुत किए जा रहे हैं
* जहा गोवो पिंडनिज्जुत्तीए (निचू भा. ४ पृ. ६७) ।
१. ओनि ३३१-७१। २. निशीथ में मूलकर्म का उल्लेख नहीं है। ३. निभा ४३७५-४४७२।
४, निचू भा. ३ पृ. ४११ । ५. पिभा ३३, ३४, निभा ४४०७, ४४०८, चू. पृ. ४११ ।
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