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२१/१. अप्पत्ते
२१ /२.
'आयरिय - गिलाणाण य५, मइला मइला पुणो वि धोवेंति । मा हु गुरूण अवण्णो, लोगम्मि अजीरणं इतरे' ॥ २७ ॥ पायस्स पडोयारो, दुनिसेज्ज तिपट्ट पोत्ति रयहरणं । एते 'ण उ१० विस्सामे १, जतणा संकामणा धुवणा १२ ॥ २८ ॥ २२ / १. जो पुण वीसामिज्जति, तं एवं वीतराग आणाए । पत्ते धोवणकाले, उवहिं १४ विस्साम साहू१५ ॥ २९ ॥
च्चिय' वासे, सव्वं उवधिं धुवंति जतणाए । 'असईए व '२ दवस्स उ जहन्नओ पायनिज्जोगो ॥ २६ ॥
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२२.
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२२ / २. अब्भिंतरपरिभोगं,
उवरिं पाउणति नातिदूरे य।
तिन्नि य तिन्नि य एगं, निसिं तु काउं परिच्छेज्जा ॥ ३० ॥
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२२/३ केई एक्के क्कनिसिं १७, संवासेउं
पाउणिय १८ जइ न लग्गंति छप्पया १९
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तिहा परिच्छंति |
ताहें २० धोवेज्जा १९ ॥ ३१ ॥
१. चिय (बी), ओनि ३५० ।
२. असइए उ ( स, मु) ।
३. य (मु, ब, ला) ।
४. प्रसा ८६४, २१/१, २- ये दोनों गाथाएं प्रकाशित टीका में निगा के क्रमांक में हैं लेकिन व्याख्यात्मक होने के कारण ये दोनों गाथाएं भाष्य की प्रतीत होती हैं। पृथ्वीकाय आदि के संदर्भ में भी ग्रंथकार ने इतने विस्तार से व्याख्या नहीं की है। ५. णाणं (ला, ब, स क ), णाण उ (बी) 1 ६. मलिनानीत्यत्र नपुंसकत्वे प्राप्तेऽपि सूत्रे पुंस्त्वनिर्देश: प्राकृतलक्षणवशात् (मवृ) ।
७. धावंति (मु, ब), धोव्वंति (स), धोवंति (ओनि ३५१) । ८. प्रसा ८६५ /
९. दोनिसेज्जा (ला) ।
१०. उ न (मु, ला, ब, स ) ।
११. वीसामे ( अ, बी, मु), सर्वत्र ।
१२. धुवणं (मु, स), यह गाथा ब प्रति में नहीं है, १८. पाउणिइ (ला, ब ) ।
ओनि ३५२ १३. गनीइए (स) ।
१५.
उवही ( क ) ।
२२/१-६ - ये छहों गाथाएं विश्रामणा-विधि एवं वस्त्रप्रक्षालन हेतु जल-ग्रहण आदि की विधि का उल्लेख करने वाली हैं। इनमें अन्य आचार्यों के मत का उल्लेख किया गया है। ये गाथाएं नियुक्ति की न होकर भाष्य की होनी चाहिए क्योंकि अन्य आचारांग आदि नियुक्तियों में भी विशेष रूप से मतान्तर का उल्लेख नहीं मिलता है। भाष्यकार के समय तक मतान्तर प्रारम्भ हो गए थे अतः ये गाथाएं भाष्य की होनी चाहिए। वैसे भी इससे पूर्व की गाथा 'धोवत्थं तिन्नि'....... (पिभा ११) गाथा भाष्य की है। इन गाथाओं को नियुक्ति की न भी माना जाए तो चालू विषय-वस्तु की दृष्टि से कोई अंतर नहीं
आता ।
१६. पडि (बी, अ), ओनि ३५३ । १७. निसि (ला), निसी ( स ) ।
१९. छप्पइया (मु) ।
२०. ताहि (बी, स, मु) ।
२१. धावेंति (क, स, मु), ओनि ३५४
पिंडनिर्युि
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