________________
अनुवाद
१७१
करने के लिए स्वयं बालक के साथ संवाद आदि द्वारा क्रीड़ा करता है अथवा कराता है। १९८/१५. स्थूल क्रीड़नधात्री से बालक विकटपाद-दोनों पैरों में बहुत अंतराल वाला हो जाता है। भग्न कटि अथवा शुष्क कटि वाली धात्री की गोद में बालक कष्ट का अनुभव करता है। मांसरहित तथा कर्कश हाथ वाली धात्री के पास रहने पर बालक भीरु होता है। १९९. कोल्लकेर नगर में संगम स्थविर स्थिरवास कर रहे थे। उनका शिष्य दत्त ग्रामानुग्राम विहार करता था। आचार्य ने शिष्य को धात्री पिंड दिलवाया। देवयोग से आचार्य की अंगुलि प्रज्वलित हो गई। २००, २०१. दूती के दो प्रकार हैं-स्वग्राम तथा परग्राम। प्रत्येक के दो-दो प्रकार हैं-प्रकट और छन्न (गुप्त)। जो स्पष्ट रूप से यह कहती है कि वह तेरी माता है, वह तेरा पिता है, वह प्रकट दूती है और जो संदेश को गुप्त वचन से कहती है, वह छन्न है। छन्न दूती के दो भेद हैं-लोकोत्तर तथा दूसरा उभयपक्षअर्थात् लौकिक और लोकोत्तर दोनों। २०१/१. मुनि भिक्षा आदि के लिए जाते हुए जननी आदि का संदेश ले जाता है कि तुम्हारी माता ने ऐसा कहा है, तुम्हारे पिता ने ऐसा कहा है। (यह प्रकट दूतीत्व है।) २०१/२. दूतीत्व गर्हित होता है, यह सोचकर वह दूसरे मुनि के प्रत्यय के लिए दूसरे प्रकार से कहता है कि तुम्हारी पुत्री अकोविद है, परंपरा से अनजान है, उसने मुझे कहा कि मेरी मां को यह संदेश दे देना। (यह प्रच्छन्न दूतीत्व है।) २०१/३. माता या पिता को यह कह देना कि तुम्हारा विवक्षित कार्य वैसे ही संपन्न हो गया है अथवा तुम जैसा चाहोगे वैसे ही करूंगी, यह उभयपक्ष (लौकिक और लोकोत्तर) प्रच्छन्न दूतीत्व है। २०२, २०३. दो गांवों के बीच वैर था। मुनि जिस गांव में रुके, वहां की शय्यातरी उनकी पुत्री थी। (उसने अपनी पुत्री को मुनि के साथ धाटी-दस्युदल के आगमन का संदेश भेजा) ज्ञात होने पर दस्यु-दल के साथ युद्ध करते हुए शय्यातरी के पति, पुत्र और जामाता का वध हो गया। लोगों में यह अपवाद फैल गया कि धाटी की सूचना किसने दी? पुत्री ने कहा-"जामाता, पुत्र और पति को मारने वाले मेरे पिता ने यह सूचना दी है।" २०४. निमित्त त्रिकाल विषयक होता है, इसके छह भेदों में जो दोष होते हैं, उनमें वर्तमानकाल विषयक निमित्त कथन तत्क्षण परघातकारी होता है, इसका यह उदाहरण है। २०५. नैमित्तिक ने अनुकम्पा करके गृहस्वामिनी को चिरकाल से गए पति के आगमन के बारे में बताया।
१. भाष्यकार ने दो गाथाओं (पिभा ३१, ३२) में इस कथा का विस्तार किया है, कथा के विस्तार हेतु देखें परि.३ कथा सं. २६ । २. कथा के विस्तार हेतु देखें परि. ३, कथा सं. २७ । ३. निमित्त के छह प्रकार ये हैं-१. लाभ २. अलाभ ३. सुख ४. दुःख ५. जीवन और ६. मरण।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org