________________
परिशिष्ट-११
निक्षिप्त शब्द निक्षेप व्याख्या की एक विशिष्ट पद्धति है। भाषाविज्ञान के क्षेत्र में जैनाचार्यों की यह विशिष्ट देन है। प्राकृत में एक ही शब्द के अनेक संस्कृत रूपान्तरण संभव हैं। निक्षेप पद्धति द्वारा उस शब्द के सभी संभावित अर्थों का ज्ञान कराकर शब्द के प्रसंगोपात्त अर्थ का ज्ञान कराया जाता है। निक्षेप भाषाविज्ञान के अन्तर्गत अर्थविकास-विज्ञान का महत्त्वपूर्ण अंग है।
न्याय के क्षेत्र में जैनाचार्यों की यह एक विशेष देन है। निक्षेप वस्तुत: व्याख्या का ही एक प्रकार है, जिसके अन्तर्गत उपक्रम, अनुगम एवं नय का भी समावेश किया गया है। उपोद्घात नियुक्ति में १२ प्रकार से किसी भी विषय की व्याख्या की जाती है, उसमें निक्षेप को प्रथम स्थान प्राप्त है। वस्तु या शब्द का चतुर्मुखी ज्ञान करवाकर अंत में शुद्ध शब्द का ज्ञान कराना निक्षेप का उद्देश्य है।
सामान्यतः आवश्यकतानुसार अनेक निक्षेप किए जा सकते हैं लेकिन इसके चार भेद प्रसिद्ध हैं:-१. नाम निक्षेप २. स्थापना निक्षेप ३. द्रव्य निक्षेप ४. भाव निक्षेप।
शब्द किसी व्यक्ति या वस्तु का वाचक होता है। शब्द के इस स्वरूप को प्रकट करने के लिए ही नाम निक्षेप की कल्पना की गयी। कल्पना के माध्यम से एक वस्तु में दूसरी वस्तु का आरोप स्थापना निक्षेप है। वस्तु की त्रैकालिक स्थिति को प्रकट करने वाला द्रव्य निक्षेप है। भाव निक्षेप जैन साधना पद्धति का बोधक है। वस्तु के यथार्थ स्वरूप का बोध इसी के द्वारा होता है। कोई भी शब्द या ज्ञान तब तक केवल द्रव्य तक सीमित है, जब तक उसमें उपयोग की चेतना नहीं जुड़ती। भाव निक्षेप में भाषा और भाव की संगति रहती है।
संसार का सारा व्यवहार निक्षेप पद्धति से चलता है। जब बच्चा जन्म लेता है, तब वह केवल नाम निक्षेप के जगत् में जीता है। थोड़ा बड़ा होने पर वह कल्पना द्वारा किसी वस्तु की स्थापना करता है, जैसेप्लास्टिक की गुड़िया में मां या बहिन की स्थापना। धीरे-धीरे वह त्रैकालिक ज्ञान में सक्षम हो जाता है और बाद में बुद्धि की सूक्ष्मता और समझ विकसित होने पर वह भावनिक्षेप द्वारा व्यवहार चलाता है। भावनिक्षेप साधना की फलश्रुति है।
निक्षेप अनेकान्त का व्यावहारिक एवं सजीव प्रयोग है। जैसे अतीत में कोई धनी था, उसे वर्तमान में भी सेठ कहा जाता है। यह बात असत्य हो सकती है लेकिन द्रव्यनिक्षेप द्वारा यह भी संभव है।
नियुक्तिकार ने अपनी व्याख्या पद्धति में निक्षेप को अपनाया। यदि सम्पूर्ण नियुक्ति-साहित्य से निक्षिप्त गाथा एवं उसकी व्याख्या का संकलन किया जाए तो एक महाग्रंथ तैयार हो सकता है। यहां
१. आनि ४, अनुद्वा।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org