Book Title: Agam 41 Mool 02 Pind Niryukti Sutra
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 468
________________ २९६ पिंडनियुक्ति पिण्डनियुक्ति के निक्षिप्त शब्दों की सूची प्रस्तुत की जा रही हैनिक्षिप्त शब्द गाथांक निक्षिप्त शब्द गाथांक अत्तकम्म (आत्मकर्म) ६७ अपरिणत (अपरिणत) २९२-९४ अहेकम्म (अध:कर्म) ६३, ६४ आयकिय (आत्मक्रीत) १४० आया (आत्मा) आयाहम्म (आत्मघ्न) आहा (आधा) ६१/१ उग्गम (उद्गम) ५६-५७/१ उप्पादणा (उत्पादना) १९४-१९४/३ एसणा (एषणा) ५२-५२/३ ६६ कीयगड (क्रीतकृत) कूड (कूट) गवेसणा (गवेषणा) गहणेसणा (ग्रहणैषणा) घासेसणा (ग्रासैषणा) विवेग (विवेक) संजोयणा (संयोजना) साहम्मिय (साधार्मिक) पिंड (पिण्ड) पूतीकम्म (पूतिकर्म) १३९-१४३ ६७/४ ५३ २३६ ३०२, ३०३ १९२/१ ३०४-३०७ ४-४७ १०७-१०९ परिशिष्ट-१२ लोकोक्तियां एवं न्याय गंगायां घोष इति न्यायात्। पूर्वद्वयलाभः पुनरुत्तरलाभे भवति सिद्ध इति वचनप्रामाण्यात् । सूचनात्सूत्रमिति न्यायात्। गोमांसभक्षणं बहुपापम्। अल्पव्ययं बह्वायं दानं। यत्राग्निस्तत्र वायुरिति वचनात्। आद्यन्तग्रहणे मध्यस्यापि ग्रहणमिति न्यायात् । दुग्धान्तानि भोजनानि। लोके एवं श्रुतिः-यदि कुमारी ऋतुमती भवेत् , तर्हि यावन्तस्तस्या रुधिरबिन्दवो निपतन्ति तावतो वारान् तन्माता नरकं याति। दुल्लभगं खु सुतमुहं। घृतं हि सक्तुमध्ये प्रक्षिप्तं विशिष्टसंयोगाय जायते। मवृ प. १२ मवृ प. २५ मवृ प. ३० मवृ प.४७ मवृ प. ११३ मवृ प. १५५ मवृ प.१६९ मवृ प. १११ मवृ प. १४५ गा. १९८/२ मवृ प. ११३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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