Book Title: Agam 41 Mool 02 Pind Niryukti Sutra
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 466
________________ परिशिष्ट-१० उपमा और दृष्टान्त किसी भी चीज की महत्ता स्थापित करने के लिए जो बात उपमा या दृष्टान्त द्वारा समझायी जाती है, वह सहजगम्य हो जाती है। उपमा से साहित्य में रम्यता, सरसता और विचित्रता उत्पन्न हो जाती है। उपमाएं काव्य-साहित्य का शृंगार होती हैं। नियुक्तिकार ने कठिन से कठिन विषय को उपमा द्वारा सरस ढंग से समझाया है। कुछ उपमाएं इतनी सरल और सरस भाषा में निबद्ध हैं कि पढ़ते ही उनका अर्थगम्य हो जाता है। कुछ उपमाओं द्वारा उस समय की संस्कृति, देश, काल और वातावरण का भी ज्ञान होता है। उपमाओं की भांति दृष्टान्तों का भी बहुलता से प्रयोग हुआ है। यहां केवल पिंडनियुक्ति की उपमाएं व दृष्टान्त संकलित हैं• जह कारणं तु तंतू, पडस्स तेसिं च होंति पम्हाइं। गा. ४९/१ • जह कारणमणुवहतं, कज्जं साहेति अविकलं नियमा। गा. ४९/२ • परहत्थेणंगारे, कढतो जह न डज्झति उ। गा. ६८/२ • जह वंतं तु अभोज्जं, भत्तं जं पि य सुसक्कयं आसी। गा. ८५ • असुइस्स विप्पुसेण वि, जह छिक्काओ अभोज्जाओ। लुक्कविलुक्को जह कवोडो । गा. ९२ • एसणजुत्तो होज्जा, गोणीवच्छो गवत्तिव्व। गा. ९६ • विसघातिय पिसियासी, मरति तमन्नो वि खाइउं मरति। इय पारंपरमरणे, अणुमरति सहस्ससो जाव॥ गा. १२३ • घतसत्तुगदिटुंतो। गा. १७७/२ • अप्पवयं बहुआयं। गा. १७९/१ • मयमातिवच्छगं पि व। गा. २०८/१ • दिटुंतो दुद्ध-दही, अपरिणतं परिणतं तं च। गा. २९३ • अत्थस्स साहणट्ठा, इंधणमिव ओदणट्ठाए। गा. ३०२/१ • निद्दड्डिंगालनिभं, करेति चरणिंधणं खिप्पं। गा. ३१४/२ • अंगारमित्तसरिसं, जा न भवति निद्दहति ताव। गा. ३१४/३ ८७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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