Book Title: Agam 41 Mool 02 Pind Niryukti Sutra
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 464
________________ २९२ पिंडनियुक्ति वलिय-भुक्त, खाया हुआ। (गा. १०८/२) सझिलगा-बहिन-सज्झिलगा-भगिनी। वल्ल-निष्पाव, काली उड़द-वल्ला-निष्पावाः । (गा. १४४ वृप. ९८) (गा. २९६ वृप. १६८) समुत्तइय-गर्वित, अभिमानी-समुत्तइओ गर्वितः । वालुंक-पक्वान्न विशेष। (गा. ३०५) __ (गा. २१९ वृप. १३४) विगड-मद्य-विकटेन मद्येन देशविशेषापेक्षम्। सरडु-कोमल। (गा. ३१) (गा. १०३ वृप. ८१) सहोढ-चोरी की वस्तु सहित। (गा. १७९/२) विच्छोडित-अंगुलि आदि से साफ किया हुआ। साइयंकार-विश्वासपूर्वक-साइयंकार त्ति सप्रत्ययम्। (गा. १२५) (पिभा ३३ वृप. १२८) विट्टालित-उच्छिष्ट, भ्रष्ट। (वृप. १४३) सामत्थण-पर्यालोचन–सामत्थणं ति स्वभटैः सह विलिय-लज्जित। (गा. १३६/३) पर्यालोचनम्। (गा. ६८/९ वृप. ४७) विलुक्क-मुण्डित। (गा. ९२) साहण-कहना-साहणं-कथनं। विसारण-फल-फूल आदि के टुकड़ों को सुखाने (गा. १०१/१ वृप. ८१) के लिए धूप में रखना-विशारणं शोषणा- साही-गली, मुहल्ला-साही-वर्तनी। यातापे मोचनम् । (गा. २८३ वृप. १६१) (गा. १५६ वृप. १०३) सइज्झित-पड़ोसिन। (वृप. १०४) सिक्कक-छींका। (वृप. १०८) सएज्झिया-पड़ोसिन–सइज्झितं वसतीप्रवेशनीम्। सिति-सीढ़ी-सोपान-पंक्ति। (गा. ६३) (गा. १५७/६ वृप. १०४) सीई-निःश्रेणि, सीढी-सीईए त्ति निःश्रेण्या।। संखड-कलह-संखडं-कलहः। (गा. ६३ वृप. ३८) (गा. १४८. वृप. १०१) • सीद-फलित होना। (गा. ५४) संखडि-• मिठाई। (गा. १५७/१) सीहकेसरय-एक विशिष्ट प्रकार का मोदक। • कलह करना-सङ्खड्या-कलहकरणेन। (गा. २१६) (गा. १७५ वृप. ११२) सुकुमारिका-चीनी की चासनी। (वृप. १७२) • विवाह आदि के उपलक्ष्य में दिया हत्थिच्चग-हाथ के आभूषण-हत्थिच्चगा-हस्तजाने वाला जीमनवार। (गा. १३४) योग्यान्याभरणाणि। • विवाह-सङ्खडि नाम विवाहादिकं प्रकरणम्। (गा. १९८/१३ वृप. १२५) (गा. ९६/४ वृप. ७९) हदन-बालक का मल-मूत्र। (वृप. १३५) • संछुह-एकत्रित करना। (गा. १४२/२) हद्दण्णय-बालक का मल-मूत्र साफ करने वाला। संथर-निर्वाह होना, संभव होना-संस्तरे-निर्वाहे। . द्वाद-अतिसार होना-हादयेत्-अतीसारं कुर्यात्। (गा. २१९/६) (गा. १९२/५ वृप. ११९) (गा. ३१२/२ वृप. १७४) सज्झिलग-१. भाई-सज्झिलगौ भ्रातरौ। हेट्ठ-अधः, नीचे। (गा. ५३/२) (गा. १४८ वृप. १०१) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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