Book Title: Agam 41 Mool 02 Pind Niryukti Sutra
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 463
________________ परि. ८ : प्रयुक्त देशी शब्द २९१ (गा. १४८ वृप. १०१) (गा. १६३/३ वृप. १०६) पोत्त-लघु बालक योग्य वस्त्र खण्ड-पोतानि मुइयंग-चींटी।। (वृप. १०७) लघुबालकयोग्यानि वस्त्रखण्डानि। मेरा-मर्यादा, सीमा। (गा. १०१/१) (गा. १४१ वृप. ९६) मोय-मूत्र--प्रस्रवण-मोयं ति मूत्रणं । पोत्ति-वस्त्र। __ (गा. २२) (गा. २१९/३ वृप. १३६) पोह-भैंस आदि की विष्ठा का समूह, कच्छ में संचण-रुई कातना तथा उसको लोठना। 'पोह। (गा. १०८/१) (गा. २८१) बघार–छोंक लगाना। (वृप. ८४) रुंटणा-अवज्ञा-रुण्टणया इति अवज्ञया। बिट्ठ-बैठा हुआ। (गा. २८८/४) (गा. ९०/३ वृप. ७५) बोड-मुंडित शिर-शिरोलुञ्चनादिति बोड इत्येव- रुक्ख-वृक्ष। __ (गा. ५३/२) मधिक्षिपति। (गा. ९२ वृप. ७६) रेल्लण-पानी का प्रवाह। (वृप. १२) बोल-तेज आवाज। (गा. २१९/८) लइय-पहना हुआ-कण्णलइयाई ति कर्णे पिनद्धानि। • भमाड-घुमाना। (गा. २२८/१) (गा. २८४ वृप. १६२) भोइणी-भार्या। (गा. २०५) लंबण-कवल-लम्बनं-कवलः। भोइय-पति। (गा. २०५) ___ (गा. ३०५ वृप. १७२) भोई-पत्नी-भोई इति भोग्या भार्या । लड्डुग –मोदक, लड्डगविषयं-मोदकविषयम्। (गा. १७३/२ वृप. १११) (गा. ५७/२ १७८ वृप. ११३) भोयग--ग्राम-नायक। (पिभा ३३) लाहणक-प्रहेणक, उत्सव के उपलक्ष्य में किसी मइलिय-मलिन। (गा. १४५) दूसरे घर से भेंट स्वरूप प्राप्त मिठाई मंथु-दधि और छाछ के बीच की अवस्था। विशेष। (वृप. १०३) । (वृप. ९०) लुक्क-मुण्डित, लुञ्चित। (गा. ९२) मज्झंतिग-मध्य। (गा. ९०/१) लेच्छारिंग-खरण्टित-लेच्छारियाणि डिम्भकयोग्यमत्थु-दही और छाछ के बीच की अवस्था। स्तोकस्तोकपायसप्रक्षेपणेन खरण्टितानि। (गा. १२८/३) (गा. ९०/३ वृप. ७५) मल्लग-शराव, सिकोरा-मल्लकं-शरावं। लोट्ट-कच्चा चावल। (वृप. १९) (गा. ९०/३ वृप. ७५) • लोल-धरती पर लुठना। (गा. १९८/११) महल्ल-बड़ा। (गा. २६४) वइया-लघु गोकुल। (गा. १४२) माइठाण-माया। (गा. २३१/३) वडग-दाल आदि का बड़ा। (गा. ३०५) मारामारी-लड़ाई, मार-पीट। (अव १५०) वलया-समुद्रतट, समुद्री लहर-वलयामुखेमाल-ऊपर का कमरा। (गा. १६६/१) वेलामुखे भ्राटरूपे निपतिते। मिठ-महावत। (वृप. ११५) (गा. ३०२/३ वृप. १७१) मूइंग-चींटी-मुइंगादयः पिपीलिका। वलवा-घोड़ी। (गा. २०५) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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