Book Title: Agam 41 Mool 02 Pind Niryukti Sutra
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 488
________________ १७४ २१ ७८ ८४ परिशिष्ट-१९ शब्दार्थ ८२/३ अच्छिन्न-अच्छिन्न, लगातार। ९९/१ १३४ अच्छेज्ज-छीनकर देना, भिक्षा का ५९,१७२, २५९ एक दोष। अच्छोड-आच्छोटन, शिला पर पटकना। २२/६ २३० अजत-अयत, असावधानी। १६३/५ १८५ अजिण्ण-अजीर्ण। १०८/१ १५७/१ अजीर-अजीर्ण। २६६ अज्ज-अद्य, आज। १९८/४ २६५ अज्झत्थ-अध्यात्म। ३२४ अज्झयण-अध्ययन। अज्झोयरय-अध्यवपूरक, भिक्षा का ५९,११०, ८३/२ एक दोष, अपने साथ साधु के १८६, लिए अधिक भोजन बनाना। १८७,१९० १६४ अट्ठ-१. के लिए, प्रयोजन, २. अष्ट। ४४ अट्ठम-तेला। २१४/२ २३१/३ अट्ठावीस-अट्ठाईस। ३१० २३१/६ अट्ठि -अस्थि, हड्डी। १७३ अट्ठिल्ल-बिनौला। २८८/७ १४३/१ अड्डरत्त-अर्धरात्रि। २२०/२ ७५ अणंतकाय-अनन्तकाय वनस्पति । २४७ अणट्ठ-अनर्थ, बिना प्रयोजन । १४३/२ अणलक्खिय-नहीं जाना हुआ। १९२ ११९/१ अणवट्टित-अनवस्थित। ३१३/६ २९५ अणवत्था-अनवस्था। ६४/१, अणवेक्खित-बिना देखा हुआ, बिना १६५ चिन्तन किया हुआ। १९८/६ १२ अणाइण्ण-अनाचीर्ण । १५१ ८०/४ अणादेस-असम्मत । १७/२ १७३ अणाभोग-अजानकारी। १३८/६, अइक्कम-अतिक्रम। अइच्छित-अतिक्रान्त करना। अइर-अतिरोहित। अंकधाई-बालक को गोद में लेने वाली धात्री। अंतद्धाण-अन्तर्धान, अदृश्य होना। अंतराइय-अन्तराय से युक्त। अंतरिय-अन्तराल, बीच में। अंदु-काष्ठ का बंधन। अंधिल्लय-अंधा। अंबग-आम्र। अंबिल-खट्टा। अकज्ज-अकार्य। अकप्प-अकल्प, अकल्पनीय। अकुंचियाग-विवर रहित (कपाट)। अक्कंत -आक्रान्त। अक्ख-अक्ष, पाशा। अक्खण-कथन। अक्खत -अक्षत , अखंडित। अक्खरय-दास। अक्खित्त-आकृष्ट। अगड-कूप। अगणि-अग्नि। अगारत्थ-गृहस्थ। अगारी-गृहस्थ महिला। अगेज्झ-अग्राह्य। अग्ग-१. प्रधान, २. अग्रिम। अग्गि-अग्नि। अघण-विरल। अचियत्त-अप्रीति, अविश्वास। अचोक्खलिणी-स्वच्छता नहीं रखने वाली। ६५, ३० ८३ २७० २८८/६ अणायर-अनादर। ८९/६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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