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परि. ३ : कथाएं
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बोला- '
-'साधु को शालिकाञ्जिक दो ।' सबके मुख से अनेक प्रकार की बातें सुनकर साधुओं ने लोगों से पूछा - ' यह क्या बात है ?' पूछने पर उन्होंने ऋजुता से सारी बात बता दी कि यह शाल्योदन साधुओं के लिए बनाया गया है । 'सारा शाल्योदन आधाकर्मिक है' 1- यह जानकर साधुओं ने उन सब घरों का परिहार कर दिया और भिक्षार्थ अन्य घरों में चले गए। कुछ साधु जिनकी भिक्षा वहां पूरी नहीं हुई, वे प्रत्यासन्न गांव में भिक्षा के लिए चले गए ।'
९. आधाकर्म : पानक- दृष्टांत
किसी गांव में सारे कूप खारे पानी के थे। उस लवण प्रधान क्षेत्र में क्षेत्र - प्रत्युपेक्षण के लिए कुछ साधु आए। उन्होंने पूरे क्षेत्र की प्रतिलेखना की । तत्रस्थ निवासी श्रावकों के द्वारा सादर अनुरोध करने पर भी साधु वहां नहीं रुके। श्रावकों ने उनमें से किसी सरल साधु को वहां न रुकने का कारण पूछा। उसने सरलता से यथार्थ बात बताते हुए कहा - ' इस क्षेत्र में और सब गुण हैं' केवल खारा पानी है इसलिए साधु यहां नहीं रुकते । साधुओं के जाने पर श्रावक ने मीठे पानी का कूप खुदवाया । उसको खुदवाकर लोकप्रवृत्ति जनित पाप के भय से कूप का मुख फलक से तब तक ढ़क दिया, जब तक कोई अन्य साधु वहां न आए। साधुओं के आने पर उसने सोचा कि केवल मेरे घर मीठा पानी रहेगा तो साधुओं को आधाकर्म की आशंका हो जाएगी अतः उसने सब घरों में मीठा पानी भेज दिया। पूर्वोक्त कथानक के अनुसार साधुओं ने बालकों के मुख से संलाप सुनकर जान लिया कि यह पानी आधाकर्मिक है। उन्होंने उस गांव को छोड़ दिया ।
१०. अतिक्रम आदि दोष : नूपुरपंडिता का कथानक
जंबूद्वीप के भारतवर्ष में बसन्तपुर नामक नगर था । वहां के राजा का नाम जितशत्रु और रानी का नाम धारिणी था। एक बार नदी में स्नान हेतु कुछ महिलाएं तालाब के किनारे आईं। वहां एक महिला के साथ सुदर्शन नामक पुरुष का आपस में अनुराग हो गया । दूती के माध्यम से उनका आपस में संबंध स्थापित हो गया । कृष्णा पंचमी को संकेतित अशोक वनिका में उन दोनों का समागम हुआ। वे वहीं निद्राधीन हो गए। चतुर्थ याम में श्वसुर ने उन दोनों को साथ सोते हुए देख लिया। उसने धीरे से पुत्रवधू के पैर से नूपुर निकाल लिया । श्वसुर के इस वृत्तान्त को जानकर उसने उस जार पुरुष को वहां से बाहर भेज दिया और स्वयं पति के पास जाकर सो गई। थोड़ी देर बाद उसने पति को जगाकर कहा - ' यहां गर्मी है अतः अशोक वनिका में चलते हैं।' वे वहां चले गए। थोड़ी देर में पति को उठाकर उसने कहा- 'क्या यह हमारे कुल अनुरूप आचार है कि पति के साथ रति-सुख का अनुभव करती हुई पुत्रवधू के पैरों से श्वसुर नूपुर ले जाए ।' पति ने पूछा- 'क्या यह सत्य है ?' प्रातः काल पुत्र ने अपने पिता से पूछा । पिता ने कहा--' -'तुम्हारी पत्नी स्वैरिणी है, वह रात्रि में किसी अन्य पुरुष के साथ सोई थी अतः मैंने उसके पैरों से
१. गा. ७६ - ७६/५ वृ प. ६३, ६४, पिंप्र टी प. ११ ।
२. गा. ७७ वृ प. ६५ ।
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